श्री रामजन्म भूमि का रक्तरंजित इतिहास
■■ मुसलमानों द्वारा श्री राम जन्मभूमि बचाव का प्रयत्न ■■
मुसलमानों द्वारा श्रीरामजन्मभूमि उद्धार का प्रयत्न सन् 1857 के विप्लव में जब बहादुरशाह को सम्राट घोषित कर विद्रोह का नारा बुलन्द किया गया तो अयोध्या हिन्दू राजा देवी बख्श सिंह गोण्डा के नरेश तथा बागी चरणदास की अध्यक्षता में संगठित हो गये । उस समय मुसलमानों के नेता अमीर अली ने अयोध्या और फैजाबाद समस्त मुसलमानों को इकट्ठा करके कहा कि विरादाराने वेगमों के जेवरातों को बचाने में हमारे हिन्दू भाइयों ने अंग्रेजों से लड़कर बहादुरी दिखाई है उसे हम भूल नहीं सकते सम्राट बहादुरशाह जफर को अपना बादशाह मानकर हमारे भाई अपना खून बहा रहे हैं । इसलिए फर्ज इलाही हमें मजबूर
करता है कि हिन्दुओ के खुदा श्रीरामचन्द्र जी की पैदायिसी जगह पर जो बाबरी मस्जिद बनी है वह हम इन्हें बखुशी सुपुर्द कर दें क्यों कि हिन्दू मुस्लिम नाइत्तफाकी की सबसे बड़ी जड़ यही है । ऐसा करके हम इनके दिल पर फतह पा जायेंगे । कहना नहीं होगा कि अमीर अली के इस प्रस्ताव का सारे मुसलमानों ने एक स्वर से समर्थन किया किन्तु अंग्रेज को यह बात मंजूर नहीं थी । वे चाहते थे कि मस्जिद बनी रहे जिससे हिन्दू और मुसलमानों के दिल आपस में मिलने न पायें कयोंकि बाबरी मस्जिद हिन्दुओं को मुसलमानों द्वारा वापस किये जाने की खबर फैल चुकी थी । अंग्रेजों में जो घबराहट फैली इसका प्रमाण हम सुल्तानपुर गजेटियर में प्रकाशित पृष्ठ 36 के कर्नल मार्टिन की रिपोर्ट को उद्धृत कर देते है । अयोध्या की बाबरी मस्जिद को मुसलमानों के द्वारा हिन्दुओं को दिये जाने की खबर सुनकर हम लोगों में घबराहट फैल गई और यह विश्वास हो गया कि हिन्दुस्तान से अब अंग्रेज खतम हो जायेंगे । लेकिन अच्छा हुआ कि गदर का पासा पलट गया और अमीर अली तथा बलवाई बाबारामचरणदास को फांसी पर लटका दिया गया जिससे फैजाबाद के बलवाइयों की कमर टूट गई और तमाम फैजाबाद जिले पर हमारा रोब जम गया । क्योंकि गोण्डा के राजा देवीवख्शसिंह पहले ही फरार हो चुके था । इस काम में राजा मानसिंह मेहदौना वाले हमारी बड़ी मदद की । कहना नहीं होगा कि अमीरअली का यह सत्प्रयत्न अंग्रेजों के नीति के कारण बिफल हो गया और 18 मार्च सन् 1858 को कुबेर टीला पर स्थित एक इमली के पेड़ में बाबा रामचरण दास और अमीरअली दोनों को फांसी पर लटका दिया गया ।
बहुत दिनों तक जनता इस इमली के पेड़ पर जिन पर उन दोनों देश भक्तों को फाँसी दी गयी थी फल अच्छत चढ़ाती रही । जब अंग्रेजों ने जनता की इतनी जबरदस्त श्रद्धा उन देशभक्तों के प्रति देखी तो उनके अन्तिम स्मारक उस इमली के वृक्ष को कटवा डाला इसी प्रकार मुसलमानों द्वारा श्रीराम जन्मभूमि का उद्धार किया गया , सब प्रयत्न अंग्रेजों की कूटनीति से व्यर्थ हो गया ।
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